तुम
आँखों में तुम्हारे नाम का
काज़ल
लगा रखा है
मैंने
पांवों में तुम्हारे
नाम के पाजेब
पहन रखे है मैंने
खनकते हो तुम्ही
मेरे हाथों में बनकर कंगन
तुम ही से तो है मेरे
ये सोलह श्रृंगार और दर्पण
पर
पर तुमने तो उतार दिया है मुझे
अपने तन से
पुरानी कमीज़ की तरह
मयूर
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Mayur ji , आप अच्छा चिञण करते हैँ।मैँने आपकी दोँनो रचनाऐँ पढ़ी और पाया कि आपकी रचनाओँ की अन्तिम लाईने बहुत प्रभावित करती हैँ।बस धार वाली कलम से लिखते जाईये।.........,..,.......,.....,..,..... -: Visit on my blog :- -( vishwaharibsr.blogspot.com )
ReplyDeleteबहुत सुंदर भाव युक्त कविता
ReplyDeletebahut achi kavita likhi hai aapne
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